जब 10 साल पहले हरियाणा में बीजेपी की सरकार पहली बार सत्ता में आई तो उसने ‘हरियाणा एक, हरियाणवी एक’ की भावना से शासन करना शुरू किया। इसका लक्ष्य प्रदेश में ‘व्यवस्था परिवर्तन से सुशासन’ की नींव डालना था। आज 10 वर्ष बाद उस नींव पर हरियाणा में बेहतर शासन शैली वाली बुलंद इमारत खड़ी हो चुकी है।
अगर आज हम हरियाणा में बीते एक दशक में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के दोनों कार्यकालों का विश्लेषण करते हैं तो इस दौरान राज्य में कुख्यात पर्ची-खर्ची सिस्टम को जड़ से मिटाने में जो कामयाबी हासिल हुई है, उसपर चर्चा के बिना ये विश्लेषण अधूरा रह जाएगा है।
जनता में विश्वास और आत्म-सम्मान की बहाली
हरियाणा सरकार ने पर्ची-खर्ची सिस्टम का सफाया करके आज प्रत्येक हरियाणवी के मन में एक विश्वास और आत्म-सम्मान जगाने में सफल रही है। इसकी वजह से जो पूरे सिस्टम में जो बदलाव आया है, उससे पूरे प्रदेश की छवि बहुत बेहतर हुई है और राज्य के नागरिकों की प्रतिष्ठा भी बढ़ी है।
आज हरियाणा के हर परिवार में चाहे वह कितनी ही दूर-दराज क्षेत्र में रह रहा हो, उसमें यह भरोसा कायम हुआ है कि चाहे स्कूलों में बच्चों का एडमिशन करवाना हो या फिर सरकारी नौकरी लेने की बात हो, इन सब का आधार सिर्फ योग्यता है। ना तो कोई सिफारिश काम आने वाली है और ना ही रिश्वत देकर अब उल्लू सीधा किया जा सकता है।
गरीब, शोषित और वंचित परिवारों के युवाओं के सपने हुए साकार
हरियाणा सरकार अपने बिना खर्ची, बिना पर्ची वाले सिद्धांत को पूर्ण रूप से पालन करवा रही है, जिसका सबसे बड़ा लाभ समाज के अंतिम कतार में बैठी जनता को भी मिल रहा है। आज हरियाणा में गरीब, शोषित और वंचित परिवारों के युवाओं को भी सरकारी नौकरी करने का दशकों पुराना सपना साकार हो पा रहा है।
हरियाणा के लोग ने वो दौर भी देखा हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि सरकारी नौकरियों पैसो के दम पर मिलती थी। इस वजह से जो लोग नेताओं और सरकारी बाबुओं के करीबी होते थे, वो ही सरकारी नौकरियों पर लग सकते थे। साक्षात्कार की प्रक्रिया तो मात्र खानापूर्ति के लिए होती थी। कहते हैं कि सबकुछ पहले से ही फिक्स रहता था।
खर्ची-पर्ची सिस्टम के नाम से कुख्यात थी हरियाणा की पुरानी व्यवस्था
कहते हैं कि भर्तियों वाली लिस्ट नेताओं के दफ्तरों से तैयार होती थी और योग्य उम्मीदवार टकटकी लगाए देखते ही रह जाते थे। उस कुख्यात खर्ची-पर्ची सिस्टम की सबसे बड़ी मार गरीबों के बच्चों पर पड़ती थी। उनके लिए तो सरकारी नौकरियों में जाना दूर का सपना था। आज जब बिना खर्ची-पर्ची के भर्ती वाली लिस्ट निकलती है तो गरीबों के घरों में मिठाईया बाटी जाती है और ख़ुशी मनाई जाती हैं।
‘मिशन मेरिट’ से बदल गई हरियाणा में शासन की व्यवस्था
हरियाणा के लोग बताते हैं कि पहले जब हरियाणा में सरकारी नौकरियों की लिस्ट जारी होती थी तो अखबारों में खबरें छपती थीं कि लिस्ट में किन-किन नेता के रिश्तेदारों के नाम आए हैं।लेकिन, अब खबरें छपती हैं तो उसमें लिखा होता है कि कैसे एक मजदूर की बेटी को सरकारी नौकरी मिली। उस किसान के बेटे को सरकारी नौकरी मिली। रेहड़ी-रिक्शा वालों के बच्चे मीडिया को इंटरव्यू देते नजर आते हैं। जब वह बताते हैं कि उन्हें उनकी योग्यता से सरकारी नौकरी मिली है तो हरियाणा की आम जनता का सरकार पर विश्वास और बढ़ जाता है।
हरियाणा में एक दशक में कैसे बदल गई सरकारी नौकरी पाने की व्यवस्था? योग्य हैं तो जॉब पक्की
एक दशक पहले बीजेपी सरकार ने ‘मिशन मेरिट’ शुरू करके सरकारी नौकरियों में जो पारदर्शिता की व्यवस्था शुरू की, अब अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बन गई है। कुछ समय पहले सिरसा जिले के एक गांव रिसालिया खेड़ा की एक रिपोर्ट चर्चित हुई थी। वहां के 35 युवाओं की सरकारी नौकरी में लगना सरकार की साफ नियत और ईमानदार नीति की एक बानगी भर है।