कई सालों तक, किश्तवाड़ और चिनाब घाटी पर संघर्ष के गहरे बदल छाए रहे है। 1990 के दशक से इस क्षेत्र ने कई हिंसात्मक घटनाएं देखि है। अगस्त 1993 में, मुस्लिम चरमपंथियों ने किश्तवाड़ जिले के सारथल इलाके में 17 हिंदू बस यात्रियों की हत्या कर दी गई थी। यह नरसंहार हिंदुओं के खिलाफ सामुदायिक हमलों की एक कड़ी की शुरुआत था।
2001 में, लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने किश्तवाड़ के पास डोडा जिले के लैडर गांव में 17 हिंदू ग्रामीणों की बेरहमी से हत्या कर दी थी। जिसके बाद भी हिंसा नहीं रुकी, 2008 और 2013 में टारगेटेड अटैक में कई हिंदुओं की जान चली गई।
2018 में, अनिल परिहार जो कश्मीर में भाजपा के एक प्रमुख नेता और परिहार समुदाय की एक छोटी सी उम्मीद की रोशनी थे, उनकी और उनके भाई अजीत की हिज़्बुल मुजाहिदीन ने हत्या कर दी। भाई जब दुकान से घर लौट रहे थे, तब संकरी गली में गोलियों का शिकार हो गए। यह घटना पूरे क्षेत्र के लिए एक बड़ा झटका था।
इस मुश्किल दौर में शगुन परिहार का उदय हुआ, जिन्होंने 23 साल की उम्र में अकल्पनीय दुख का सामना किया। पिता की मौत ने उन्हें गहरे दुख में डाल दिया, लेकिन शगुन ने अपने दुखों को परिवर्तन की ताकत में बदल दिया। इस चुनाव में भाजपा ने उन्हें किश्तवाड़ से एकमात्र महिला उम्मीदवार के तौर पर चुना है। उनके पढ़ाई से राजनीति तक का सफर उनकी मेहनत और ताकत को दिखाता है। परिवार की विरासत और क्षेत्र के शहीदों को सम्मान देने की भावना से प्रेरित होकर, शगुन ने राजनीति में कदम रखा।
आज, किश्तवाड़ को एक नई पहचान मिली है-धैर्य और बदलाव के प्रतीक के रूप में। 2019 के बाद से इस क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। हिंसा की घटनाएं कम हो गई हैं, और आतंकवाद से तबाह हुए हिंदू मंदिरों का पुनर्निर्माण हो रहा है।
पवित्र स्थल जैसे श्री गौरी शंकर मंदिर और अष्टभुजा माँ दुर्गा मंदिर को बहुत ध्यान से पुनर्निर्मित किया गया है। सर्कूट, किश्तवाड़ में स्थित श्री गौरी शंकर मंदिर, जो शिव और पार्वती को समर्पित है, अब एक प्रमुख तीर्थ स्थल और उत्सवों का केंद्र बन चुका है। अब यह मंदिर जन्माष्टमी, राम नवमी, मचैल यात्रा और सार्थल यात्रा जैसे त्योहारों की मेज़बानी करता है। हाल ही में गई जन्माष्टमी की जुलूस किश्तवाड़ के इतिहास की सबसे बड़ी जुलूसों में से एक थी।
स्थानीय हनुमान मंदिर के पंडित ने मंदिरों के पुनर्निर्माण पर बात करते हुए बताया, “पहले जो मंदिर बर्बाद हो गए थे, अब उन्हें बहुत प्रेम और स्नेह के साथ पुनर्निर्मित किया गया है। अब ये मंदिर हमारे समुदाय की अडिग आस्था और शक्ति के प्रतीक हैं।”
आर्टिकल 370 हटने के बाद, किश्तवाड़ ने विकास के नए युग की तरफ कदम बढ़ाया है। बटोट-किश्तवाड़ सड़क, जिसे अब राष्ट्रीय राजमार्ग का दर्जा मिला है, इस क्षेत्र की जीवनरेखा बन गई है। स्थानीय निवासियों ने भारत सरकार को धन्यवाद प्रकट करते हुए कहा कि “अब हमें सुरक्षित महसूस होता है और हम अपने धर्म का पालन पूरी स्वतंत्रता से कर सकते हैं। किश्तवाड़ अब एक नई शुरुआत और एक ऐसे समुदाय की ताकत का प्रतीक है जो अपने अतीत से बाहर निकल चुका है।”
खेलेनी टनल और अन्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं ने किश्तवाड़ में नई ऊर्जा भर दी है, जिससे कनेक्टिविटी में बहुत सुधार हुआ है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला है। किश्तवाड़ के एक निवासी ने बताया हैं, “नई सड़क से श्रीनगर और जम्मू तक का सफर अब तेज़ हो गया है, जिससे यहां के बाजार को फायदा हुआ है। इन प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता के लिए हम सरकार के आभारी हैं।”
किश्तवाड़ की बदलाव यात्रा हिंसा से लेकर एक प्रेरणादायक कहानी बन गई है। सबसे गहरे घाव भी समय, साहस, और एकता के साथ भर सकते हैं।