सन्यासी जैसा जीवन और घोड़े की तरह बिना थके काम,सुप्रीम कोर्ट की जजों को दो ये सलाह ,यहां जाने पूरी खबर

Saroj Kanwar
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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को न्यायपालिका के अधिकरियों को सोशल मीडिया से दूरी बनाए रखने और एक सन्यासी की तरह जीवन जीने की सलाह दी है। यह टिप्पणी मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा दो महिला न्यायिक अधिकारियों की बर्खास्तगी से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान की गयी। सुप्रीम कोर्ट ने जजों को यह नसीहत दी है उन्हें न्यायिक कार्य करते समय अपनी टिप्पणियों और रायों से बचना चाहिए।और इस मामले में सोशल मीडिया का उपयोग करने से बचना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने दी जजों को सलाह

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस की बीवी नागरत्नाऔर जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच पर इस पर टिप्पणी की। जहाँ उन्होंने जजों को सलाह दी की अपने कार्यो में बहुत संयमित और प्रतिबद्ध रहें। कोर्ट ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों के लिए कोई दिखावा या सोशल मीडिया पर अपनी राय जाहिर जारी करने के स्थान नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि जजों को सोशल मीडिया पर किसी प्रकार की पोस्ट या टिप्पणियां नहीं करनी चाहिए। खासकर अदालत के फैसला संबंधित।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका एक की सन्यासी की तरह जीवन जीना चाहिए ,घोड़े की तरह काम करना चाहिए। जजों को न्यायएक कार्य पूरी तरह समर्पित रहना चाहिए बिना किसी प्रकार की व्यक्तिगत टिप्पणियों और सार्वजनिक बयान बाजी के। कोर्ट ने ये भी बताया कि सोशल मीडिया जैसे प्लेटफार्म सक्रिय होने से जजों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर असर पड़ सकता है।

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का बर्खास्तगी मामला

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी उस समय आयी जब मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने दो महिला जजों को बर्कशास्त किया था। इन महिला जजों में से एक ने सोशल मीडिया पर पोस्ट डाली थी जिसमें लेकर शिकायत की थी। उन्होंने कहा कि कार्य न्यायिक प्रक्रिया से संबंधित नहीं था और इसे कोर्ट के फैसलों के साथ मेल नहीं खाता है।
मामला 11 नवंबर 2023 को तब सामने आया , जब राज्य सरकार ने कथित असंतोषजनक प्रदर्शन के कारण छह महिला सिविल जजों की बर्खास्तगी का निर्णय लिया। हालांकि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की पूर्णअदालत ने अगस्त 2023 में अपने पहले के प्रस्ताव पर पुनर्विचार किया और चार महिला जजों को कुछ शर्तों के साथ बहाल करने का फैसला किया जबकि दो अन्य जजों को इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की स्वतः यात्रा संज्ञान लिया और बर्खास्त किए गए जजों की स्थिति पर विचार किया।

जजों को सोशल मिडिया से बचने की सलाह

सुप्रीम कोर्ट ने जजों को सोशल मीडिया से पूरी तरह से बचने की हिदायत दी है। कोर्ट ने कहा कि ,सोशल मीडिया पर किसी प्रकार की टिप्पणी टिप्पणी या पोस्ट से न्यायाधीश स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल उठ सकते हैं। जजों को अपनी जिम्मेदारियां की प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध होना चाहिए और उन्हें व्यक्तिगत रायो से बचना चाहिए। यह आदेश यह सुनिश्चित करने के लिए दिया गया कि न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर कोई सवाल न उठे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका के अधिकारियो को यह भी याद दिलाया को किसी प्रकार की सार्वजनिक निजी मंच पर न्यायिक फेसलो पर राय नहीं देनी चाहिए क्योंकि इससे न्यायिक प्रक्रिया में पक्षपाती होने की संभावना बढ़ सकती है। कोर्ट ने ये भी कहा कि जजों को न्यायिक कार्यक्रम पूरी तरह समर्पित रहना चाहिए और उन्हें कोई भी व्यक्तिगत गतिविधि जैसे कि सोशल मीडिया पर पोस्ट डालना ,अपने कार्य से बाहर रखना चाहिए।

न्यायपालिका में दिखावे की कोई जगह नहीं


सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका के अधिकारियों को यह भी याद दिलाया कि न्यायपालिका में दिखावे की कोई जगह नहीं है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जजों को पूरी तरह से अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए कार्य करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका का उद्देश्य निष्पक्षता और न्याय सुनिश्चित करना है, न कि किसी प्रकार के निजी या राजनीतिक दबाव के तहत कार्य करना। इसलिए, जजों को अपने व्यक्तिगत विचारों से बचते हुए केवल कानून और साक्ष्यों के आधार पर फैसले देने चाहिए।

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