अगर आप ट्रेकिंग का शौक फरमाते हैं तो हमने आपके लिए चुना है हिमालय धौलाधार पर्वत श्रृंखला का एक छोटा-सा ट्रैक ‘त्रिउंड’, जो करीब 10000 फुट की ऊंचाई पर भी है। कभी कभीटिपटिप बारिश तो कभी तेज बौछारों के बीच फिसलन भरे रास्ते पर एक एक कदम जमाने की जरूरत नहींकोशिश ने हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला से ऊपर इस ट्रेक को यादगार बना देगा।
ट्रेक को और भी रोमांच भरा बनाया जा सकता है
इस ट्रेक को और भी रोमांच भरा बनाया जा सकता है अगर लाका और बर्फीले इंद्रहार दर्रा पार करते हुए चंबा की ओर बढ़ा जाए तो लेकिन बारिश में फिसलन भरे रास्ते के बाद हो सकता है आप ऊपर चोटी को बर्फ देखने की बजाय एक रात अपने तब्बू में बादल की गर्जन महसूस करने के लिए रुक जाये।मैक्लोडगंज से जो तिब्बत की निर्वासित सरकार की राजधानी है। दलाई लामा की पीठ होने की चलते यहां दुनिया भर के बोद्धो के लिए आस्था प्रमुख केंद्र है। बौद्ध मठो और बौद्ध भिक्षुओ के लिए इस नगरी से ही खुलता है त्रिउंड का रास्ता।
मेघालय के चेरापूंजी की याद दिलाता है
यह रास्ता आपको मेघालय के चेरापूंजी की याद दिलाता है जिसे कुछ समय पहले तक सबसे अधिक बारिश के लिए जाना जाता था। ऊपर त्रिउंड पहुंचते पहुंचते दिन ढलने लगता है। ठंड और बारिश ब ihbढ़ जाती है । बादल खूब गरज रहे थे और चोटी पर बिजली का घेरा था। इस पूरे ट्रिक में आपको सुनाई देती है बौद्ध मठों की घंटियों की मधुर ध्वनि जो धुंध और नीचे उतर आए बादलों की सतह पर तैरती प्रतीत होती है। मैक्लोडगंज का एक बड़ा आकर्षण है भगसू फॉल्स और भगसू मंदिर।
धीमी -धीमी बारिश आपके इस सफर को भी यादगार बना देगी
ठीक ऊपर से शुरू होता है त्रिउंड ट्रैक। जब आप ट्रेक शुरू करेंगे तो धीमी -धीमी बारिश आपके इस सफर को भी यादगार बना देगी। रास्ते और हाथों में छातो औरकंधे पर टंगे सामान को पन्नी से कसकर बाँधने के बावजूद हाथ-पैर नम से लगने लगते हैं। बारिश के चलते रास्ते ठीक से दिखता नहीं है। पैरों का संतुलन गड़बड़ाता है। फिसलन इतनी की एक कदम गलत पड़ा और आप हजारो फुट नीचे खाई में । ऐसे रास्ते छाते लेकर चलना टेढ़ी खीर है। ये रास्ता आपको मेघालय के चेरापूंजी की याद दिलाता है। इसे कुछ समय पहले तक सबसे अधिक बारिश के लिए जाना जाता था। ट्राएंड में रुकने के लिए सिर्फ वन विभाग का एक गेस्ट हाउस है जो यहां का स्थायी इंतजाम है। वहां चोटी के पास थोड़ी सी जगह समतल है जहां बारिश और तेज हवा के बीच तंबू गाढ़ सकते हैं। लौटते हुए मैक्लोडगंज और रास्ते में बने बौद्ध मठों की घंटियाँ यह आभास दिलाती रहीं कि निर्जन वन में कहीं दूर ही सही कोई है।