पानी को लंबे समय तक एकत्रित करने के लिए लोग लंबे समय से कुओं का इस्तेमाल कर रहे है और आज भी लोगों को कुओ की आवश्यकता पड़ती है। सरकार ने भी किसानों को कुआं बनाने के लिए सब्सिडी दे रही है ऐसे में से आज हम बात कर रहे है ऐसे किसान की ,जिन्हे कुआं बनाने के लिए सरकार ने 2.99 लाख रुपए का अनुदान के रूप में दिए । और वह कुंआ बनाकर बेहद खुश है। उन्हें पानी की बहुत समस्या आती थी लेकिन अब उन्हें अपने जीवन यापन के लिए भरपूर पानी मिल रहा है। इसके साथ ही वह खेती में कर रहे हैं।
जानते है किसान का नाम व कुआं बनाने अनुदान कैसे उन्हें मिला है
पहले उनकी जमीन सूखी पड़ी रहती थी लेकिन अब सिंचाई करके खेती कर रहे हैं। उन्हें अनाज खरीदना नहीं पड़ता है बल्कि बिक्री करके कमाई कर रहे हैं। चलिए जानते किसान का नाम व कुआं बनाने अनुदान कैसे उन्हें मिला है । और अब पानी की समस्या दूर होने पर क्या खेती कर रहे हैं।
जिस लाभार्थी किसान के बारे में हम बात कर रहे हैं वह छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर जिले के रहने वाले हैं। उनका नाम राम मिलन है। किसान को कुआं बनाने के लिए 2.99 लाख रुपए का अनुदान सरकार की तरफ से मिला है जिसमें किसान के द्वारा मिली जानकारी के अनुसार आपको बता दे कि महात्मा गांधी नरेगा योजना के अंतर्गत किसानों को कुआं बनाने के लिए लाभ प्राप्त हुआ है जिसके लिए उन्होंने अपने ग्राम पंचायत में आवेदन किया था तब जाकर उन्हें यह लाभ मिला है। इस तरह अगर किसानों को लाभ लेना है तो अपने ग्राम पंचायत में आवेदन कर सकते हैं। इसके बाद आवेदन तकनीकी सहायक के माध्यमसे तकनीकी प्राक्कलन तैयार होगा। फिर जनपद से जिले में जाएगा । फिर वहां से राशि स्वीकृत होकर किसान को मिलेगी। अधिक जानकारी के लिए किसान तकनीकी सहायक से संपर्क करें। लाभार्थी को मिले लाभ से गांव के अन्य लोगों को रोजगार मिला, चलिए जानते हैं कैसे।
लोगों को मिला रोजगार, पानी की समस्या हुई दूर
किसान राममिलन को कुआं बनाने के लिए अनुदान मिला। जिसके बाद गांव के लोगों को रोजगार मिला। दरअसल जब किसान कुआं बना रहा था, उस समय मनरेगा श्रमिकों को भी रोजगार मिला। मनरेगा श्रमिको ने ही उस कुएं को बनाया और 600 दिन काम किया। जिससे उन्हें रोजगार मिल गया। इस तरह दोनों लोगों को लाभ हो गया। किसान बताते हैं कि पानी की समस्या उनकी दूर हो गई है। कुएं के द्वारा खेत की सिंचाई करते हैं। चार एकड़ की जमीन जो असिंचित थी, जिसके वजह से उन्हें अनाज बाहर से खरीदना पड़ता था, लेकिन अब वह खुद धान आदि फसलों की खेती करते हैं और सेवन के साथ-साथ उससे जीवन-यापन कर रहे है।