खेती के लिहाज से से मेवाड़ के श्री गंगानगर के विख्यात रेलमगरा क्षेत्र में बामनिया कला गांव गांव की मावे की मिठाई को लेकर काफी फेमस हो रहा है। यहां के मावे में गजब का स्वाद है। तभी तो रेलमगरा ,राजसमंद ,उदयपुर ही नहीं ,बल्कि मेट्रो सिटी सूरत ,मुंबई इंदौर तक डिमांड है ,कोई बड़ा कारखाना नहीं ,मगर मावे स्वाद और गुणवत्ता के आगे कीबड़े -बड़े मिष्ठान भंडार पीछे है । ना सिर्फ शहर की अभ्वा से दूर देहाती गांव में बनता है बल्कि शहर से महंगा भी है। इसके बावजूद शुद्धता ,गुणवत्ता ,व लजीज स्वाद के चलते हर कोई मावे के लिए बामनिया कलां गांव की तरफ दौड़ा चलता है।
यह गांव राजस्थान की राज्यसभा जिले में रेल मगरा क्षेत्र का एक ग्राम पंचायत मुख्यालय है। सरपंच किशन साल्वी बताते हैं कि वे जब से जन्मे तब से यही ठेला देख रहे है ,जहाँ पहले प्यार जी मावा बनाते थे और अब उनका पुत्र कारीगर है। उनके गांव व आसपास क्षेत्र में लोग मावा खरीदने आते हैं तो वे वह शहर नहीं जाते बल्कि बामनिया कला गांव का रुख करते हैं। यही स्थिति रेल मगरा व राजसमंद शहर तक के लोगों के हाल है। जिसने भी एक बार यहां का मावा चख लिया फिर उसे कभी दूसरी जगह मावा अच्छा लगता ही नहीं। यहां पर पिछले 40 साल से मावा मिल रहा जो शहर के मुकाबला 10 से 20 रुपए तक महंगा भी है।
मावे की क्या-क्या खासियत
गाय के भैंस की मिक्स दूध से मावा तैयार किया जाता है ताकि दानेदार मावा बन सकते है साथ ही शक्कर ज्यादा नहीं डालते ,जिससे लजीज स्वाद रहे और खाने वाले व्यक्ति के लिए फायदेमंद है। कभी गुणवत्ता से समझौता नहीं करते ,मगर खर्चा बढ़ता है तो महंगा बेचते है सरपंच किशन साल्वी बोले , यहां के मावे में शुद्धता की गारंटी है।
इसलिए बाजार से महंगा है मावा
यह मावा गाय व भैंस दोनों के दूध से बनता है। इसमें 30 लीटर दूध में 10 लीटर गाय के दूध को मिक्स किया जाता है। तभी दावेदार मावा दानेदार मावा बनता है। इस तरह 40 किलो दूध से 20 किलो मावा बनता है। पहले हाथ से बनाते थे मगर अब मशीन ले आये जिससे मावा बनाया जाता है। यह मावा 350 रुपए प्रति किलो की दर में बिकते हैं जो शहरी बाजार के मुकाबले 10 से 20 रुपए तक महंगा है।