शेषनाग पर क्यों सोते हैं भगवान विष्णु, क्या सच में उनके फन पर टिकी है धरती!

जब-जब धरती पर पाप बढ़ता है तब-तब किसी ना किसी रूप में भगवान विष्णु अवतार लेते हैं। हर अवतार में अलग सीख देतें हैं। यह बात सच है कि भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ है, परन्तु शेषनाग का साथ उनके हर अवतार में जुड़ा हुआ है। क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान विष्णु शेषनाग पर ही क्यों सोते हैं? और क्या सच में पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी है। आज हम आपको इससे जुड़े कई अनसुने रहस्य के बारे में बताएंगे। भगवान श्री हरि विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग यानी सर्प पर शयन करते हैं। हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु जगत का पालन करने वाले देवता हैं।
भगवान विष्णु उपयुक्त समय पर मानव जाति का मार्ग दर्शन करते हैं। शास्त्रों में भगवान विष्णु का स्वरूप सात्विक यानी शांत, आनंदमयी तथा कोमल बताया गया है। वहीं दूसरी ओर भगवान विष्णु के भयानक तथा कालस्वरूप शेषनाग पर आनंद मुद्रा में शयन करते हुए भी दर्शन किए जा सकते हैं। भगवान विष्णु के इसी स्वरूप के लिए शास्त्रों में लिखा गया है 'शान्ताकारं भुजगशयनं' यानी शांत स्वरूप तथा भुजंग यानी शेषनाग पर शयन करने वाले देवता भगवान विष्णु।
भगवान विष्णु के इस अनूठे स्वरूप पर गौर करें तो यह प्रश्न अथवा तर्क भी मन में आता है कि आखिर काल के साये में रहकर भी क्या कोई बिना किसी बेचैनी के शयन कर सकता हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार शेषनाग भगवान विष्णु की उर्जा का प्रतीक हैं जिस पर वे आराम करते हैं। दरअसल, मानव जीवन का प्रत्येक पल कर्तव्य एवं जिम्मेदारियों से जुड़ा होता है। इनमें पारिवारिक, सामाजिक तथा आर्थिक दायित्व अहम होते हैं। किंतु इन दायित्वों को पूरा करने के साथ-साथ अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का सिलसिला भी चलता रहता है, जो कालरूपी नाग की तरह भय, बेचैनी एवं चिंताएं पैदा करता है।
कई मौकों पर व्यक्ति टूटकर बिखर भी जाता है। अतः भगवान विष्णु का शांत स्वरूप ऐसे बुरे वक्त में संयम एवं धीरज के साथ जीवन की सभी मुश्किलों पर काबू पाने की प्रेरणा देता है। विपरीत परिस्थितियों में भी शांत, स्थिर, निर्भय तथा निश्चित मन एवं मस्तिष्क के साथ अपने धर्म का पालन करना ही भगवान विष्णु के भुजंग अथवा शेषनाग पर शयन का प्रतीक है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि शेषनाग ने अपनी कुंडली में सभी ग्रहों को पकड़ के रखा है और वे भगवान विष्णु के मन्त्रों का उच्चारण करते हैं। यदि भगवान विष्णु संपूर्ण ब्रह्मांड, ग्रहों और तारों के प्रतीक हैं तो वास्तव में यह महत्व जायज है।