India Middle East Europe Economic Corridor - 6000 KM लंबा होगा इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर , 40% कम समय में यूरोप पहुंचेगा भारतीय सामान

दिल्ली में G20 समिट ने दुनिया में भारत की भागीदारी के कई दरवाजे खोल दिए हैं। समिट में इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाने की घोषणा की गई है। भारत, UAE, सऊदी अरब, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय यूनियन सहित कुल 8 देशों के इस प्रोजेक्ट का फायदा इजरायल और जॉर्डन को भी मिलेगा। यह कॉरिडोर 6 हजार किमी लंबा होगा। इसमें 3500 किमी समुद्र मार्ग शामिल है। कॉरिडोर के बनने के बाद भारत से यूरोप तक सामान पहुंचाने में करीब 40% तक कम समय लगेगा। अभी भारत से किसी भी कार्गो को जर्मनी पहुंचने में 36 दिन लगते हैं। इस रूट से 14 दिन की बचत होगी।
इन सात वजहों से भारत इस प्रोजेक्ट से जुड़ा
-सबसे पहले भारत और अमेरिका इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में काम कर रहे थे, लेकिन पहली बार दोनों मिडिल ईस्ट में साझेदार बने हैं।
-भारत की मध्य एशिया से जमीनी कनेक्टिविटी की सबसे बड़ी बाधा पाकिस्तान का तोड़ मिल गया है।
-भारत के ईरान के साथ संबंध सुधरे हैं।
-अरब देशों के साथ की भागीदारी बढ़ी है।
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-अमेरिका को उम्मीद है कि इस मेगा कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट से अरब प्रायद्वीप में राजनीतिक स्थिरता आएगी और संबंध सामान्य हो सकेंगे।
-यूरोपीय यूनियन ने 2021-27 के दौरान बुनियादी ढांचे के खर्च के लिए 300 मिलियन यूरो निर्धारित किए थे। भारत भी इसका भागीदार बना।
-नया कॉरिडोर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विकल्प है। कई देशों के चीन के कर्ज जाल से मुक्ति मिलेगी।