खतरे में दिखाई दे रहा है इलेक्ट्रिक गाड़ियों का फ्यूचर, जानिए क्या है वजह

भारत कच्चे तेल के सबसे बड़े आयातकों में से एक है। हम अपनी जरूरत का करीब 85 फीसदी कच्चा तेल बाहर के देशों से आयात करते हैं। पिछले वित्त वर्ष में भारत ने करीब 120 अरब डॉलर का कच्चा तेल खरीदा था। जाहिर है यह देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ा बोझ है।
इलेक्ट्रिक वाहन विकास की पटरी पर सरपट दौड़ रहे हैं
बेशक, इलेक्ट्रिक वाहन विकास की पटरी पर सरपट दौड़ रहे हैं। कार कंपनियां लगातार प्रोडक्शन बढ़ा रही हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगले 8 सालों में बैटरी से चलने वाली कारों की बिक्री में 30 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। इस मांग को पूरा करने के लिए कार कंपनियों को बैटरी, ढेर सारी बैटरी की जरूरत होगी। यही वजह है कि बैटरी सेगमेंट में भी निवेश बढ़ रहा है। चीन की CATL दुनिया की सबसे बड़ी बैटरी बनाने वाली कंपनी है। इसने पिछले उत्पादन को बढ़ाने के लिए लगभग साढ़े सात अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की।
हालांकि, इस तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है। बढ़ते भू- राजनीतिक दबाव के बीच पश्चिमी कार कंपनियां चीन के बैटरी उद्योग पर निर्भरता कम करने पर विचार कर रही हैं। उन्हें लगता है कि अगर चीन में कुछ भी गलत हुआ तो उनका उत्पादन ठप हो जाएगा. इसलिए वह दूसरे विकल्पों पर भी विचार कर रही है। लेकिन, दूसरे विकल्प महंगे हैं। यही वजह है कि साल 2022 में बैटरी मेटल्स की कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिली।
ब्लूमबर्गएनईएफ की भविष्यवाणी
कुछ समय पहले ग्लोबल कमोडिटी मार्केट पर नजर रखने वाली रिसर्च कंपनी ब्लूमबर्गएनईएफ ने भविष्यवाणी की थी कि साल 2024 तक इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने और चलाने की लागत पेट्रोल- डीजल वाहनों के बराबर हो जाएगी। लेकिन, अब ब्लूमबर्गएनईएफ अपनी ही भविष्यवाणी पर संदेह कर रहा है।
दरअसल, इलेक्ट्रिक वाहनों की राह में कई बाधाएं हैं। बैटरी अपने आप में एक मसला है और यूरोप में कार्बन उत्सर्जक वाहनों की बिक्री 2035 से पहले बंद नहीं होगी। अमेरिका जैसे बड़े देश अभी भी इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर ज्यादा गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं। बैटरी बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्रियों की भारी कमी है। इसलिए यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या इलेक्ट्रिक व्हीकल का युग आने से पहले ही खत्म हो जाएगा?
आशंका के कुछ ठोस कारण
इस आशंका के कुछ ठोस कारण हैं। जाहिर है कि इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग के अनुपात में बैटरी की मांग भी बढ़ेगी। हालाँकि, चीन की BYD और CATL के अलावा, दक्षिण कोरिया की सैमसंग और LG जैसी कुछ ही कंपनियाँ बड़े पैमाने पर बैटरी का निर्माण करती हैं। अगर बैटरी की मांग को पूरा करना है तो नए खिलाड़ियों को उद्योग में प्रवेश करना होगा। लेकिन, मुद्दा यह है कि इस प्रकार के व्यवसाय में बड़ी पूंजी की आवश्यकता होती है और नई कंपनियां इतना बड़ा जोखिम लेने से बचती हैं।