Mughal emperor:औरंगजेब ने अपने भाई को घुमाया था कटी धड़ के साथ पूरे सल्तनत में

जब मुगल सल्तनत की बात आती है तो अक्सर हिंदू लोग भी किसी राजकुमार की तारीफ करते हैं। वह थे दारा शिकोह। बादशाह शाहजहाँ का बेटा। जिन्होंने हिन्दू धर्मशास्त्र का अध्ययन किया था। इस धर्म से प्रेम करते थे। वह धर्मगुरुओं को बुलाकर व्याख्यान देता था। उन्होंने बड़े पैमाने पर हिंदू ग्रंथों का अनुवाद करवाया। उनके धर्म के प्रति इस प्रवृत्ति के कारण मुस्लिम धर्मगुरु उनसे बहुत नाराज थे। जहां कुछ लोग उन्हें पंडितजी तो कुछ काफिर कहने लगे। वह अपनी दयालुता के कारण जनता के बीच लोकप्रिय थे। बादशाह शाहजहां उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे लेकिन औरंगजेब ने उन्हें युद्ध में हरा दिया और खून की नदियां बहाकर सत्ता हड़प ली। लेकिन इतिहास ने हमेशा दारा को खास जगह दी और उन्हें सम्मान के साथ याद किया.
औरंगजेब को लगा कि अगर दारा सफल हुआ तो इस्लाम खतरे में पड़ जाएगा।
इतिहासकार कहते हैं कि वह एक विनम्र और उदार हृदय के थे। कहा जाता है कि दारा शिकोह के पिता समझ गए थे कि उनका बेटा भारत को जान गया है और वह शासन करने के लिए बेहतर साबित होगा, लेकिन औरंगजेब ने हंगामा खड़ा कर दिया। औरंगजेब को लगा कि अगर दारा शिकोह सफल हुआ तो इस्लाम खतरे में पड़ जाएगा।read also:
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दारा को इस बात पर आश्चर्य होता था कि सभी धर्मों के विद्वान अपनी-अपनी व्याख्याओं में उलझे रहते हैं और यह कभी नहीं समझ पाते कि इन सबका मूल तत्व एक ही है। उनका मानना था कि किसी व्यक्ति के पास ज्ञान होने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह व्यक्ति सत्य की खोज करे। उन्होंने हिंदू और मुस्लिम धर्मों के एक साथ आने को मजमा-उल-बहरीन (दो समुद्रों का मिलन) का नाम दिया।
दारा का सबसे बड़ा योगदान क्या था
उपनिषदों का फारसी में अनुवाद दारा के सबसे बड़े योगदानों में से एक माना जाता है। उन्होंने इन अनुवादित पुस्तकों को 'सर-ए-अकबर' यानी महान रहस्य का नाम दिया। फारसी भाषा में अनुवाद करवाने का मुख्य कारण यह था कि मुगलिया दरबार में फारसी का प्रयोग होता था। यहाँ तक कि हिन्दुओं का विद्वान वर्ग भी इस भाषा से भलीभांति परिचित था।
भारत में हिंदूवादी इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों का मानना है कि अगर औरंगजेब दारा शिकोह के बाद मुगल साम्राज्य की गद्दी पर बैठा होता तो देश की स्थिति बहुत अलग होती।