Indian Railways: आखिर क्यों पूरे ट्रैक पर पत्थर होते हैं, मगर रेलवे स्टेशन पर नहीं?

हम सभी ने कभी-न-कभी ट्रेन से जरूर सफर किया होगा. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि रेलवे ट्रैक पर पटरियों के नीचे नुकीले पत्थर क्यों होते हैं? कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक आपको ऐसे रेलवे ट्रैक हर जगह दिखाई देते हैं। आइए जानते हैं कि आखिर क्यों रेलवे ट्रैक के नीचे इन नुकीले पत्थरों को लगाया जाता है और इसका क्या फायदा होता है।
कैसे बनते हैं रेलवे ट्रैक
अगर आप किसी रेलवे ट्रैक को ध्यान से देखें तो उसे एक सेट तरीके से बनाया जाता है। रेल की पटरियों के ठीक नीचे कंक्रीट के लंबे प्लेट्स होते हैं। इन्हें स्लीपर कहा जाता है। इन स्लीपर्स के नीचे नुकीले पत्थर बिछाए जाते हैं. इन पत्थरों को ब्लास्ट कहा जाता है। इसके नीचे दो अलग-अलग तरह की मिट्टी को सेट करके लगाया जाता है। यह सब कुछ सामान्य जमीन से कुछ ऊपर और होता है।जब रेलवे ट्रैक पर से ट्रेन गुजरती है, तो स्लीपर और पत्थरों का यह कॉम्बिनेशन ही ट्रेन के भार को संभालता है। त्वचा के लिए कच्ची हल्दी के फायदे
बड़े स्टेशनों पर ये पत्थर क्यों नहीं होते?
पहले रेलवे में के ICF कोच में बने टॉयलेट में ओपन डिस्चार्ज सिस्टम हुआ करता था, यानी टॉयलेट से निकलकर गंदगी सीधा ट्रैक पर गिरती थी। अब क्योंकि बड़े स्टेशनों पर ट्रेन ज्यादा देर तक रुकती है, तो ऐसे में जब ट्रेन स्टेशन पर खड़ी रहती थी तो टॉयलेट से निकलने वाली गंदगी ट्रैक पर आकर गिर जाती थी, जिससे ट्रेन के जाने के बाद काफी गंदगी हो जाती थी। ऐसे में अगर ट्रैक पर पत्थर होंगे तो वो गंदगी साफ नहीं हो पाएगी और स्टेशन पर दुर्गंध फेल जायेगी। इसलिए बड़े स्टेशन पर ट्रैक को कंक्रीट से बनाया जाता था,त्वचा के लिए कच्ची हल्दी के फायदे ताकि ट्रेन के जाने के बाद ट्रैक की अच्छे से सफाई की जा सके।
वहीं, दूसरी ओर छोटे स्टेशनों पर ट्रेन सोर्स 1 या 2 मिनट के लिए ही रुकती है। इसलिए वहां ज्यादा गंदगी भी नहीं फैलती है। इसीलिए वहां ट्रैक पर पत्थर ही होते हैं। हालांकि, अब रेलवे ने ओपन डिस्चार्ज सिस्टम को हटा कर बायो टॉयलेट लगा दिए हैं। जिसके बाद ट्रैक पर गंदगी गिरनी बंद हो गई है।