Begum Samru Sardhana:- ये हैं बेशुमार दौलत और हुस्न की 'मलिका', इनपे मुगल और गोरे थे फिदा

भारत के इतिहास में जब मुगलों का पतन हो रहा था तब एक ऐसी महिला आई जिसने अपनी अलग पहचान बनाई। ये एक आम नर्तकी हैं जिसे तवायफ भी कहा जाता था। ये उस दौर की सबसे प्रभावशाली बेगम समरू कैसे बन गई , आइए जानते हैं।
'मुगल दौर की वो कहानी जिसे कम लोग ही जानते हैं'
दिल्ली के चांदनी चौक के एक कोठे में पली-बढ़ी थी फरजाना। फरजाना बेहद खूबसूरत थीं। इसी दौरान फ्रांस की सेना में रह चुका भाड़े का सैनिक वॉल्टर रेनहार्ड भी लड़ाई के बाद दिल्ली में रुका हुआ था। जिस दिन रेनहार्ड की नजर फरजाना पर पड़ी तो वो हमेशा के लिए उसी का हो गया।
फरजाना के समरू बनने की कहानी
बक्सर की लड़ाई के बाद रेनहार्ड बादशाह शाह आलम II के वजीर मिर्जा नजफ खान की सेना में शामिल हो गया। रेनहार्ड फरजाना को अपने साथ ले आया। यहाँ फरजाना को नया उपनाम समरू मिला। रेनहार्ड का साथ मिलने के बाद उसे बेगम समरू कहा जाने लगा था।
बनीं 'जेब-उन-निस्सा'
फरजाना के पास 3000 से ज्यादा सिपाहियों, यूरोपियन अफसरों और बंदूकधारियों की सेना थी। बेगम समरू ने इस यूनिट को हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहने का हुक्म दे रखा था। जब शाह आलम द्वितीय पर हमला हुआ तो बेगम समरू ने फौरन मदद भेजी जिससे खुश होकर बादशाह ने बेगम समरू को 'जेब-उन-निस्सा' का खिताब दे दिया।alsoreadShri Radha Death:- कैसे हुई थी श्री राधा रानी की मृत्यु? जाने
क्यों छोड़ा इस्लाम?
रेनहार्ड की मौत के बाद बेगम समरू ने इस्लाम छोड़ दिया। वो कैथोलिक ईसाई बन गईं। उनका नाम जोएना हो गया। सेना के एक इटैलियन अफसर से उन्होंने सरधना में एक चर्च Basilica of Our Lady of Graces बनवाया।
करोड़ों की मालकिन थीं बेगम समरू
बेगम समरू ने जनवरी 1836 में आखिरी सांस ली। उनकी मौत के बाद सरधना की बेगम समरू की सारी धन-संपत्ति अंग्रेज हुकूमत का प्रतिनिधित्व करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी को मिल गई। कहा जाता है बेगम समरू के पास सोने की करीब 5.5 करोड़ मुहरें थीं यानी वो उस दौर में अरबों रुपये की मालकिन थी। जोएना को सरधना के चर्च में ही दफनाया गया।