Khanzada Begum - मुगलों की वो राजकुमारी जिसने परिवार के लिए खुद को कर दिया दुश्मन के हवाले

मुगल साम्राज्य के बारें में हम किताबों में पढ़ते हैं। मुगलों की शासन प्रणाली से लेकर प्रशासनिक सेवाएं तक इतिहास में इस साम्राज्य से जुड़ी हर जानकारी उपलब्ध है। आज हम बात करेंगे बाबर की बहन खानजादा के जीवन के बारें में । इतिहासकार खानजादा को परिवार की जिंदगी बचाने वाली योद्धा के रूप में बताते है।
बाबर और शायबानी के युद्ध में बाबर की बुरी तरह से हार हुई थी और शायबानी ने उसे 6 महीने तक घेरे रखा था । जंग में हुई हार के बाद बाबर के सैनिक रोटी के लिए भी तरस गए थे। उनके भूखे मरने तक की नौबत आ गई थी। यही वह समय था जब बाबर की बड़ी बहन खानजादा सामने आई और उसने अपने भाई को बचाने का निर्णय लिया। खानजादा राजनीतिक रूप से बेहद ताकतवर थीं। अपने दुश्मनों को फंसाना उसे बेहतर ढ़ंग से आता था। बाबरनामा में उन्हें एक ऐसी महिला के रूप में चित्रित किया गया है जिसने परिवार के लिए अपनी जिंदगी को ताक पर रख दिया था ।
जब बाबर और उसके सैनिक भूखे मरने लगे तो शायबानी ने एक शर्त रख दी। शर्त के अनुसार अगर खानजादा की शादी शायबानी खान से हो जाती है तो बाबर को मुक्त कर दिया जाएगा। खानजादा को ये कदम उठाने के लिए उनके पूरे परिवार ने रोका लेकिन वे नहीं मानी और अपने भाई के खातिर उन्होंने अपने दुश्मन से ही शादी कर ली।
उनकी शादी तो हो गई लेकिन उनकी जिंदगी कभी खुशहाल नहीं रही। शादी के बाद खानजादा ने बेटे खुर्रम को जन्म दिया लेकिन यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी और जल्द ही उनके बेटे का देहांत हो गया। बेटे के देहांत के बाद खानजादा और शायबानी के रिश्तों में कड़वाहट आने लगी और दोनों अलग हो गए। शायबानी ने खानजादा की शादी फौजी सैयद के साथ कर दी। उनके दूसरे पति की मौत हो गई । सैयद शायबानी और शाह इस्माइल के युद्ध में फौजी की मौत हो गई और खानजादा को शाह इस्माइल ने कैद कर लिया। जब शाह को खानजादा के बारे में सब पता चला तो उसने बाबर की बहन को बाबर तक पहुंचा दिया। इस तरह वह 10 सालों बाद अपने परिवार से मिली । परिवार के लिए किए गए इस त्याग को आज भी दुनिया नमन करती है।